प्रेम रस सिद्धांत की 70वीं वर्षगांठ पर जानें पुस्तक की खास बातें
बात है 1955 की। भारत की स्वतंत्रता को एक दशक पूरा होने को था। अंग्रेजी शासन की बेड़ियों से मुक्त होने के बाद, किसी विदेशी शक्ति के हस्तक्षेप या दबाव के बिना, जनसाधारण अपने जीवन के फैसले स्वयं लेने के लिए स्वतंत्र था। एक ओर जीविकोपार्जन का प्रयास था तो दूसरी ओर आध्यात्मिक उत्थान का। सदियों की पराधीनता के बाद, अब देशवासी जीवन के अस्तित्ववादी प्रश्नों के जवाब जानना चाहते थे, ईश्वर से उनके सम्बन्ध और अपनी अन्य आध्यात्मिक शंकाओं के समाधान के लिए उन्हें तलाश थी ऐसे व्यक्ति या वस्तु की जो उन्हें सत्य, धर्म और आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग पर ले जा सके।
इस परिप्रेक्ष्य में, संसार में व्याप्त भ्रम और शंका को दूर करने और जीवों को उनके कल्याण का वास्तविक मार्ग दिखाने के लिए, बसंत पंचमी के पावन अवसर पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज जनसाधारण की भाषा में एक ऐसी पुस्तक प्रस्तुत की जिसके माध्यम से उन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र का खरा सत्य सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया। इस पुस्तक का नाम है प्रेम रस सिद्धांत। आगे पढ़े
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